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कुछ मेरी सुनें, कुछ अपनी कहें...कुछ अनकही, कुछ अनसुनी...

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Thursday, December 31, 2009

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Posted by shailly at 5:17 AM 1 comment:
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और मैं बातूनी हो गई...

और मैं बातूनी हो गई...
थोड़ी गप्पें हो जाएं

खंडरों में भी रौशनी रहती है

खंडरों में भी रौशनी रहती है
दिल्ली का पुराना किला

कलम जिद्दी हो गई है।

अबतक मैने बहुत लिखा, कभी उड़ते पन्ने पर, किसी भरी हुई डायरी की आखिरी लाईन, कुछ अधकचरे कागज़ और कुछ गुमनाम दिखाई पड़ने वाले खुद को लिखे खत। मेरी कलम से लिखे शब्द अकसर इन्हीं जगहों पर दबे-छिपे आपको मिल जाएंगे। इससे ज्यादा ना मैंने ना मेरी कलम ने कभी सोचा ना लिखा। लेकिन आजकल हाईटेक होती दुनिया को देखकर मेरी कलम भी लगता है थोड़ी जिद्दी हो गई है। अब उसे कम जगह पसंद नहीं आती। कई बार तो चलते चलते अड़ जाती है। मैं कितना समझाती हूं कि लिखने के लिए दिखने का क्या काम। लेकिन शायद अबतक मेरी आवाज़ को आगाज़ देती इस कलम ने खुद भी बोलना सीख लिया है। इसलिए ये मेरा कहना नहीं मानती। क्या करूं मेरी कलम जिद्दी हो गई है।

मैं और मेरी तनहाई

shailly
delhi, Delhi, India
जितनी बड़ी दिल्ली , उससे बड़ा उसका दिल...और इसी दिल की धड़कन में मैंने भी आसरा लिया। बचपन बीता और अब उम्र की पच्चीसी भी यहां यारों दोस्तों के साथ जमकर मनाई। इससे आगे ना कभी जा पाई ना जाने का मौका ही मिला। सबकुछ स्थाई तौर पर एक ही रहा। सेंट्रल स्कूल लॉरेंस रोड से 1998 में 12वीं पास हुई , उसके बाद दिल्ली के ही कालिंदी कॉलेज में हिन्दी विशेष में तीन साल गुज़ारे। फिर गाहे-बगाहे भारतीय विद्या भवन से मास कॉम में डिप्लोमा हो गया। और ज़ी टीवी, सहारा के बाद अब एनडीटीवी इंडिया में डेस्क की ड्युटी बजा रही हूं। आगे अभी कम से कम पच्चीस साल और बाकी है सो ये सफर अभी जारी रहेगा।
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