Thursday, March 29, 2007

एक पल की ज़िंदगी


एक पल की ज़िंदगी
एक पल की मौत
इस बीच में जो बीता
उसका कैसा मोल


आंखों से गिरती गीली नमीं जब
पलकों से जाकर होंठो पे आए
वो गुज़रे हुए पल
रोशन में नहाए

तुम तक ना पहुंची क्यों आवाज़ मेरी
ना पहुंचे मेरे देखे सपने सजाए
क्या झूठा क्या सच्चा
क्या अपना पराया
वादे ये तुमने कुछ ऐसे निभाए

कहते हो तुम हमसे, बांधा है तुमको
कहते नहीं क्यों, क्या रिश्ते निभाए

एक पल की ज़िंदगी
एक पल की मौत
इस बीच में जो बीता
उसका कैसा मोल

शैली श्रीवास्तव

2 comments:

manish said...

hi shailly, its right ki the threads are sometimes more complex and stubborn that they dont seem to loosen up but u should not stop trying bcoz one day when ur finger get scratched in these threads u will find the real ones coming to you and for you only and then u can ascertain which thread to choose and which to leave aside alone. thanks, manish

Kaltakkhabar.com said...

salute to your literature, Ravi Shankar (kaltakkhabar.com)